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कविता

हर चीज का

प्रेमशंकर शुक्ल


हर चीज का एक नेपथ्य है
इस पत्ती का भी
यह एकदम से हरी होकर
हमारे सामने नहीं आई है

ओसार में आ रही इस धूप का भी
एक नेपथ्य है
अपने उजाले और आँच को लिए हुए
रात भर चलकर पूरी तैयारी के साथ
यह हमारे सामने आई है

हम जितना मंच पर होते हैं
उस से कई गुना अधिक
हमारा नेपथ्य में है

हर कविता का भी
अपना नेपथ्य होता है
मंच से अधिक नेपथ्य में कविताएँ
चीजों का रूपांकन करती रहती हैं
जरूरी नहीं कि कोई कविता आँसू की हो
तो उसमें हँसी का निषेध हो
कोई खुशी की हो तो वह
दुख से अपना मुँह फेर ले

मनुष्य के अनुभव ने ही
उद्घाटित किया है यह :
कि चीजों को मंच से अधिक
मुकम्मल नेपथ्य की जरूरत होती है

 


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